Nisha - 1 in Hindi Horror Stories by PRATIK PATHAK books and stories PDF | निशा - भाग-1

Featured Books
  • પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-122

    પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-122 બધાં જમી પરવાર્યા.... પછી વિજયે કહ્યુ...

  • સિંઘમ અગેન

    સિંઘમ અગેન- રાકેશ ઠક્કર       જો ‘સિંઘમ અગેન’ 2024 ની દિવાળી...

  • સરખામણી

    સરખામણી એટલે તુલના , મુકાબલો..માનવી નો સ્વભાવ જ છે સરખામણી ક...

  • ભાગવત રહસ્ય - 109

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૯   જીવ હાય-હાય કરતો એકલો જ જાય છે. અંતકાળે યમ...

  • ખજાનો - 76

    બધા એક સાથે જ બોલી ઉઠ્યા. દરેકના ચહેરા પર ગજબ નો આનંદ જોઈ, ડ...

Categories
Share

निशा - भाग-1

कभी-कभी हमारे साथ कुछ ऐसी घटनाएँ बन जाती है जो पूरे जीवन तक हमें याद रहेती है।लाख भूलानेकी कोशिश करो मगर हम नाकामियाब रहते है।मे आकाश, मेरे साथ भी कुछ ऐसा हुआ था।वो वाकया याद आता है ओ आजभी बदनके सारे रोंगटे खड़े हो है। बात है पाँच साल पहलेकी,मे अपने तीन दोस्त निशांत,हार्दीक और प्रतीक चारो कॉलेज खतम होने के बाद एक बड़ी ट्रिप का प्लान कर रहे थे। काफी चर्चा और विचार के बाद अपने दोस्त निशांतकी पसंदपे हम सबने ठप्पा लगाया, जगह थी अलवर के भाणगढ़ का किल्ला और उसके आसपास के सब टुरिस्ट प्लेस। जुलाई महीनेका आखिरी सप्ताह था,चारोने बड़ी ज़ोरोसे जाने की तैयारी की,अहेमदाबाद से भाणगढ़ का सफर तकरीबन साड़े तेरा घण्टे का था। इसलिए सभिने बारी-बारी कार चलाने का फैसला किया।कई साल से हम ऐसे सफर मे जाना चाहते थे जो पूरी रोड ट्रिप हो, “ An Endless Journey”। जिसमें दिनो का कोई बंधन न हो जीतने दिन घूमना चाहो उतने दिन घूमो। रातके नो बजे अहेमदाबादसे सफर की शरूआत हुई। सबसे पहेले गुजरात-राजस्थानकी बॉर्डरसे थोड़ी बियर और शराब की बोटले और सिगरेट ली।हार्दीक और प्रतीक के सफरपे आनेकी वजह बियर और शराब ही थे।जब की निशांत आर्किलोजी का विद्यार्थी था और मेरा कोई खास कारण नहीं था।पहेले दो दिन हमने जयपुरमे बिताए और तीसरे दिन सीधा अलवर भाणगढ़के लिए रवाना हुए।सोलवी सदिमे भगवत दासके द्वारा बनाया हुआ वो किल्ला जो लोगोके लिए हंमेशा कुतूहलका विषय रहा है।वो एक श्राप के कारण बना “भूतोका भाणगढ़” पहेले चार दिन तो हमने अलवरकी आलीशान होटलमे गुजारे, रोज भाणगढ़ के किल्लेको देखने और आसपासकी जगह देखने जाते।सफर ज्यादा दिनोका था इसलिए सबने तय किया की कोई घर या धर्मशालामे रहे।पांचवे दिन पास ही एक पुरानी हवेली जैसी धर्मशाला थी उसमे हम रहननेकों चले गये।वहा हम चारो और संचालक भवानीसिंग के अलावा कोई नहीं था।जगह इतनी डरावनीथी इसलिए यहा कोई आता नहीं होगा। चार दिन होटलमे सोने के बाद पाँचवें दिन धर्मशालाके वो बीस बाय तीस के कमरेमे कहा नींद आती। दस से ज्यादा पलंग पर लोग चार। बारिश का मौसम था,शाम को हल्की हल्की बारिश हुई थी पर बादल सिर्फ गरजके चले जाते थे। उस रात कमरेमे बहोत गर्मी हो रही थी। गरमीसे रहा नहीं जा रहा था। दो दोस्त तो दारू पीके टून हो गये थे।तो मे और निशांत मस्त ठंडी बियर लेकर धर्मशाला की छतपे सोनेके लिए गदा लेकर चल पड़े। “रातके आंठ बजेके बाद छत पे जाना वर्जित है, यह साला क्या है भाणगढ़की हर जगहोपे ऐसी सूचनाऐ लिखी होती है।” निशांतने कहा। अरे कोई बात नहीं देखा जाएगा चलना भवानीको नहीं पता चलेगा, मैंने जवाब दिया और छत पे सोने के लिए चले गये। गद्दे बिछाये और बियर के घूंट मारते मारते बाते करने लगे। बारिश आनेसे पहेलकी मिठी महेक आ रही थी और मे उसका आनंद ले रहा था। “अरे सो गया क्या निशांत उठ,यह तो घोड़े बेचकर सो गया,मगर मुजे तो कहा नींद आयेगी।चलो थोड़ा एफ.एम सुना जाय।“ मैंने मोबाइल मे स्थानिक रेडियो चेनल लगाया,” नमस्कार रातके बाराह बजे है और आप सुन रहे है, “कही अनकही बातें “,अभिषेख के साथ वो सच्ची कहानिया जो अलवर और उसके आसपास मे बनी हो। “ पहेले तो यह कहानिया सुननेमे कोई खास दिलचस्पी नहीं रही मगर धीरे धीरे मजा आने लगाथा। एक तरफ आसमानमे काले बड़े बादलोने घेरा डालाथा,बिजलीया और उसकी आवाज़े,तो नीचे कुत्तोकी भोंकनेकी आवाज़े आ रही थी, अब माहोल एफ.ऐम की कहानियो जैसा हो गया था। डरके मारे मैंने रेडियो ही बंध कर दीया और खड़े होकर देखा तो दूर-दूर तक अंधेरा ही। अकेले अब थोड़ा डर लग रहा था। सोचा कि एक सिगरेट पीलू। अचानक मेरी नज़र सामने एक परछाई पे पड़ी। “कौन है वहाँ? डरने के बावजूद मे ज़ोर से चिल्लाया। सामनेसे कोई जवाब नहीं आया सिर्फ रोने की आवाज़ सुनाई दी।थोड़ी हिम्मत करके मे उस आवाज़ की दिशामे गया देखातों एक छब्बीस सताइश साल की एक बहोत ही खूबसूरत लड़की,जिसकी सुंदरताको देखकर मै तो वही पे उसमे मोह गया।उसके पास जाते ही उसने रोना अचानक बांध कर दिया और मेरे सामने एक हलकि सी मुस्कान दी।किसिभी लड्के का दिल जीतने के लिए लडकीकी एक मुस्कान ही काफी होती है।मेँ ही उसकी मुस्कान और सुंदरताके सामने अपना दिल हार गया।मैंने उसे रोने वजह पूछि तो उसने बातको टालते हुए मुजे मेरा परिचय पुछा। “मे आकाश ,गुजरात से आया हु ।“ मैंने जवाब दिया।लड्कीओ की हमदर्दी और भावनाओ को जितना मुजे पहेलेसे ही बहुत खूब आता था,इसलिए मैंने उसे उसके रोने का और यहा पे आनेका कारण पूंछा। “मेरा पति हररोज मुजे शराब पीकर मारता है, गालिया देता है और अपने दोस्तोके साथ हमबिस्तर होने को बोलता है” उसने धीरे धीरे बोला। उस वक्त मुजे उसको गले लगनेका मन हुआ कहेनाथा की मे हु कोई चिंता मत करो,मगर मैंने अपने जस्बातोंपे तुरंत काबू किया। तुम्हारा नाम क्या है ? मैंने पुछा उसने उसका नाम “निशा” बताया। बातों बातोमे हम दोनोंमे दोस्ती हो गई। उसके सुंदरता और मुस्कानने मेरे दिलको घायलही कर दिया था। पर मेरे मन मेतों एक ही सवाल घूम रहा था की वो इतनी रात गए अचानक धर्मशालाकी छत पे कैसे और कहा से आई, जबकि धर्मशालामे स्त्रियो के आने पर सम्पूर्ण पाबंधि थी और विशेष रात के आठ बजे के पश्चात छत पे आना वर्जित है।मन मे यह सब सवालोका दौर चलता रहा और हल्की बारिश की बुँदे आसमान से गिरने लगी, तभी मैंने निशांतको जगाने गया और मुड़के देखा तो निशा गायब!!मन मे कई सवालोका युद्ध छिड़ा हुआ था।के निशा कौन थी? कहासे आई ? कहा गई ?बारिशने भी कुछ बुँदे गिराके मज़ाक कर दिया।और मे वहां कब सो गया पता न चला।

आखिर कौन है यह लड़की ? इतनी रात को छत पेे क्या कर रही थी ? क्यों आकश उसकी तरफ खिंचा जाा रहा था? जानने के लिए जुुडे रहीये आपके प्रतीक और मातृृृभारती के साथ।